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दिवाली पर कोटेदारों की झोली रही खाली, नहीं मिला कमीशन अंधकार में डूबा त्यौहार

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पूरे देश में दीवाली कोटेदारों के घर अमावस, यही है अंधेर नगरी अनभुज राजा की कहावत

 

(खुर्शीद आलम लखीमपुर खीरी)

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में महीनों से कोटेदारों को कमीशन नहीं मिला, इसके बाद भी पूर्ति विभाग के अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया। कोटेदारों का कहना है उनको जो कमीशन मिलता है उससे दुकान का किराया निकलता है, दुकान पर वितरण के लिए जो लेवर रखना पड़ता है, उसको अपने पास से पैसा देना होता है, लेकिन कमीशन न मिलने से कोटेदारों की दिवाली फीकी हो गई।

कोटेदारों का कहना है कि महीनों से उनको कमीशन नहीं दिया गया है। सरकार से मिलने वाले कमीशन से ही उनका काम-धाम चलता है। दिवाली के मौके पर कमीशन मिल जाता तो उनको दिक्कत न होती उनके घर भी त्यौहार की खुशियां होती। साप्ताहिक अवकाश, त्योहार पर भी लोगों को अनाज वितरित कर रहे हैं, मगर अफसर व सरकार उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। उनकी जेब तो खाली है, ही साथ ही वितरण में सहयोग के लिए जिन लड़कों को लगाते हैं उसको पैसा कहां से दें यह बड़ा सवाल है।

कोटेदारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में उन्हें प्रति क्विंटल मात्र 90 रुपये कमीशन मिलता है, जबकि अन्य राज्यों में यह राशि 200 रुपये प्रति क्विंटल है। कोटेदारों ने सरकार पर सौतेला व्यवहार करने का बड़ा आरोप लगाया है।

लखीमपुर खीरी जिले में उचित दर विक्रेताओं के माध्यम से कार्डधारकों को राशन वितरण कराया जाता है। पिछले कई महीनों से कोटेदारों को कमीशन नहीं मिला है। इससे सभी कोटेदार आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं।

कोटेदारों का कहना है कि वे सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार, ई-केवाईसी और राशन वितरण का काम कर रहे हैं। लेकिन उनके कमीशन भुगतान को लेकर सरकार गंभीर नहीं है।

जहां कर्मचारियों को त्यौहार में सरकार के द्वारा समय से पहले सैलरी दी जाती है, त्यौहार में बोनस दिया जाता है, और उपहार के रूप में सैलरी में बढ़ोतरी भी की जाती है, वहीं कोटेदारों का जो मात्र कमीशन बाकी है वह भी उनको मिलना दुश्वार हो चुका है, और पूरा त्यौहार अंधकार में डूब चुका है, कोटेदारों का परिवार भी भुखमरी के कगार पर पहुंच चुका है, कभी अन्नदाता कहे जाने वाले कोटेदार आज खुद आर्थिक तंगी का शिकार हो चुके हैं। कभी दूसरों के त्यौहार कराने वाले कोटेदारों के बच्चे आज खुद तरस रहे हैं दीपक और फुलझारियों के लिए, कोटेदारों के पास इतने पैसे तक नहीं की अपने बच्चों के लिए त्यौहार में मिठाई, फुलझड़ी, दीपक व कपड़े तक ला सकें, सरकार के सौतेले रवैया से त्योहार को ग्रहण लग गया, अब यह दिवाली का त्योहार कोटेदार कैसे मनाएं, अपने बच्चों को कपड़े व मिठाई कहां से लाकर दें, आखिर कोटेदारों की यह पीड़ा कब सुनी जाएगी कोटेदारों के साथ न्याय कब होगा।

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